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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2709
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

प्रश्न- निर्देशन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।

अथवा
निर्देशन से सम्बन्धित विभिन्न विद्वानों द्वारा बताये गये विभिन्न सिद्धान्तों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्त कौन-कौन से है?

उत्तर -

निर्देशन की प्रक्रिया बहुत विस्तृत प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के सिद्धान्तों की संख्या को निश्चित नहीं किया जा सकता। इस प्रक्रिया को अत्यधिक लचीला माना गया है। यही कारण है कि इसके सिद्धान्तों की संख्या में विस्तार एवं संकुचन सम्भव है। विभिन्न विद्वानों के अनुसार निर्देशन के विभिन्न सिद्धान्त होते हैं तथा इनकी संख्या में भी भिन्नता आ जाती है। क्रो तथा क्रो ने निर्देशन के चौदह सिद्धान्नों का उल्लेख किया है। लीफिवर और टसेल ने भी चौदह सिद्धान्त ही बताये हैं। हम्फरी और ट्रैक्सलर के अनुसार निर्देशन के सात प्रमुख सिद्धान्त हैं। जोन्स ने सिद्धान्तों की संख्या पाँच बताई है। किन्तु इन सभी विद्वानों द्वारा स्वीकृत सिद्धान्तों में कुछ ऐसे सिद्धान्त हैं जिनका अनुकरण लगभग सभी करते हैं। निर्देशन के प्रमुख सिद्धांतों का वर्णन निम्न दिया गया है-

(1) निर्देशन सेवाएँ प्रदान करते समय व्यक्तिगत भिन्नताओं को ध्यान मंप रखना - कोई भी व्यक्ति दो एक जैसे नहीं होते, अतः निर्देशन कार्यकर्त्ताओं को निर्देशन सेवाएँ प्रदान करते समय व्यक्तिगत भिन्नताओं को अपनी दृष्टि में रखना चाहिए।

(2) सभी व्यक्तियों को औसत एवं सामान्य मानना - हमफरी और ट्रैक्सलर के अनुसार निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था के दौरान अधिकतर व्यक्तियों को सामान्य मानना चाहिए। कुछ विशिष्ट व्यक्ति, जो बौद्धिक या शारीरिक रूप से पिछड़े हों या जिनका संवेगात्मक विकास बहुत ही अपर्याप्त हो, विशेष निर्देशन की आवश्यकता महसूस करता है। ऐसे व्यक्तियों के लिये विशिष्ट सुविधायें प्रदान की जा सकती हैं। विद्यार्थियों पर ऐसा प्रभाव न पड़े कि निर्देशन कर्मचारी केवल समस्या-विद्यार्थियों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं। ऐसा करके वह अन्य विद्यार्थियों की कुसमायोजन एवं असामान्य बनाने से रोकने में अपना योगदान दे सकता है।

(3) निर्देशन सेवाओं में कार्य करने वाले व्यक्तियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाये - वर्तमान काल में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विशिष्टीकरण हो चुका है। मानव व्यवहार में जटिलता बढ़ चुकी है। नई-नई समस्याओं एवं परिस्थितियों में साधारण अनुभव प्राप्त व्यक्ति सफल निर्देशक नहीं हो सकता। इसके लिये निर्देशन कर्मचारियों को अपने-अपने का विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। मूल्यांकन एवं व्यवहार के अध्ययन के लिये व्यावसायिक योग्यता का पता लगाने के लिए व्यक्ति की समस्याओं का अध्ययन करने के लिए विशेष योग्यता प्राप्त व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। अतः कुशल निर्देशन के लिये विशेष योग्यता प्राप्त कर्मचारियों के विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता रहती है।

(4) निर्देशन सेवाएँ व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की ओर ध्यान दें - निर्देशन व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में सहायता प्रदान करे। निर्देशन का प्रारम्भ किसी विशिष्ट समस्या से होता है। व्यक्ति की विशिष्ट समस्या का सम्बन्ध उसके संपूर्ण व्यक्तित्व से होता है। किसी भी व्यक्ति को कार्य करते समय व्यक्ति के दृष्टिकोण, मान्यताएँ, मूल्य एवं कार्य करने का ढंग इत्यादि में उसका संपूर्ण व्यक्तित्व प्रतिबिम्बित होता है। इसलिये निर्देशन सेवाओं को व्यक्ति के संपूर्ण विकास में सहायक होना चाहिए।

(5) निर्देशन व्यक्ति को अपनी समस्याओं में स्वयं निर्देशन करने की योग्यता विकसित करने में सहायता प्रदान करना है - निर्देशन प्राप्त करने वाले व्यक्ति की हर प्रकार से सहायता की जानी चाहिए ताकि वह समस्याओं के प्रति अपनी सूझ, विवेक एवं निर्णय करने की योग्यता का विकास कर सके। इसके लिए व्यक्ति को अपनी परिस्थितियों को समझने, उनमें समायोजन करने एवं अपनी क्षमताओं से परिचित होने में निर्देशन सहायक सिद्ध होता है। व्यक्ति को धीरे-धीरे उत्तरदायित्वों को वहन करने में सहायता प्रदान कर निर्देशन उसे प्रौढ़ता की ओर ले जाता है और फिर व्यक्ति धीरे-धीरे समस्याओं के बारे में आत्म-निर्भरता एवं आत्म-विश्वास विकसित कर लेता है। इसीलिये कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर परामर्शदाता को अपनी ओर से कोई निर्णय या हल उपबोध्य कर थोपना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा करने पर सम्भव है वह हल उस व्यक्ति के लिए हितकर सिद्ध न हो।

(6) व्यक्ति के महत्त्व एवं प्रतिष्ठा की स्वीकृति - निर्देशन का यह सिद्धांत व्यक्ति की प्रतिष्ठा एवं महत्त्व को ध्यान में रखता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शक्तियों, सम्भाव्यताओं एवं क्षमताओं के अनुरूप पूर्ण विकास तक ले जाना, निर्देशन का लक्ष्य है, तभी समाज संगठित रूप से अधिकतम प्रगति कर सकता है। इसी सिद्धान्त से जुड़ा हुआ निर्देशन का एक अन्य सिद्धान्त है कि निर्देशन की सुविधा सभी को उपलब्ध हो, केवल कुछ विशेष आवश्यकता वाले व्यक्तियों के लिए नहीं सामान्यतः व्यक्ति के जीवन में प्रगति के लिये एवं समस्याओं के समाधान के लिए भी निर्देशन उतना ही आवश्यक है जितना कि विशेष समस्या वाले व्यक्ति के लिये।

(7) निर्देशन कार्य में व्यक्ति को संपूर्ण व्यक्तित्व पर दृष्टि रखनी चाहिए - जब परामर्शदाता या निर्देशक व्यक्ति की समस्याओं पर विचार करता है तो उस दौरान निर्देशक का उसके संपूर्ण व्यक्तित्व को ध्यान में रखना आवश्यक है। व्यक्ति की समस्याएँ शैक्षिक, व्यावसायिक, व्यक्तिगत या अन्य कई प्रकार की हो सकती हैं पर उनका सम्बन्ध एक-दूसरे से बना रहता है। जैसे व्यावसायिक निर्देशन में व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास एवं उसके समायोजन सम्बन्धी कठिनाइयों को भी ध्यान में रखना होता है। व्यक्ति का व्यक्तित्व इकाइयों में नहीं बाँटा जा सकता। आवश्यकतानुसार निर्देशक, तथ्यों, रुचियों एवं अन्य मानसिक शक्तियों का विश्लेषण एवं अध्ययन अलग-अलग कर सकता है, पर निर्देशन प्रक्रिया में प्रार्थी के संपूर्ण व्यक्तित्व, उसकी समस्याओं में अन्तःसम्बन्ध को ध्यान में रखना आवश्यक है।

(8) निर्देशन प्रक्रिया से सम्बन्धित विभिन्न कार्यकर्त्ताओं के कार्यों में समन्वय - आजकल निर्देशन प्रक्रिया व्यापक और विस्तृत होती जा रही है। अतः विभिन्न कार्यों के लिये विशिष्टीकृत लोगों की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी है। निर्देशन सेवाओं का संगठन इस प्रकार किया जाना चाहिए कि सभी निर्देशन कार्यकर्त्ताओं के प्रयत्नों में समन्वय स्थापित किया जा सके। प्रत्येक कार्यकर्ता अपनी योग्यता के अनुसार योगदान करे और सभी कार्यकर्त्ता अपने प्रयत्नों को समन्वित दिशा में ले जायें। इसके लिये इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। पहली निर्देशन सेवाओं का संगठन तर्कसंगत आधार पर किया जाना चाहिए। दूसरे विशिष्ट योग्यताओं के अनुरूप अलग-अलग कार्यकर्त्ताओं को अलग-अलग भूमिकाएँ सौंपी जायें और निर्देशन सेवाओं से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सम्बद्ध सभी व्यक्ति पूरे दिल से एक-दूसरे को सहयोग प्रदान करें।

निर्देशन प्रक्रिया में निर्देशन कर्मचारी तो सहयोग करें ही, साथ ही कक्षा अध्यापक, माता-पिता एवं अन्य सूत्रों का भी सहयोग निर्देशन की सफलता के लिये वांछनीय है। जहाँ निर्देशन सेवा में एक से अधिक व्यक्ति लगे हों वहाँ एक निरीक्षण अधिकारी उन सभी के कार्यों के संयोजन के लिये नियुक्त किया जाना चाहिए। चाहे किसी भी व्यक्ति का कार्य बड़ा हो अथवा किसी का छोटा, निर्देशन की पूर्णता के लिये सभी को समुचित महत्व प्रदान किया जाये।

(9) निर्देशन कार्यकर्त्ताओं को आवश्यक गोपनीयता बनाये रखकर नैतिक आचरण संहिता का पालन करना चाहिए - परामर्शदाताओं को गोपनीयता के नैतिक मानदण्डों का पालन कठोरता से करना चाहिए। यदि परामर्शदाता इसका पालन नहीं करता है तो वह विद्यार्थी का विश्वास खो बैठेगा और अन्य परामर्शदाता को भी विद्यार्थी अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के बारे में स्पष्टतापूर्वक सभी बातें बताने में हिचकेगा। निर्देशन सेवाओं में लगे हुए व्यक्तियों को यदि इस प्रकार की जानकारी देनी हो तो भी उसे व्यक्तिगत रूप से मिलकर बताना चाहिए न कि उसे किसी फाईल इत्यादि पर नोट देकर।

(10) निर्देशन सेवा पर्याप्त आँकड़ों के वस्तुगत अध्ययन तथा पर्याप्त विश्लेषण पर आधारित हो - आजकल प्राप्त आँकड़ों पर निर्देशन कार्यक्रम चलता है। बिना गहराई से अध्ययन किये हुए, कोई परामर्शदाता अपना कार्य करता है तो ऐसी स्थिति में विद्यार्थी या प्रार्थी को ही हानि होने का भय रहता है। शैक्षिक, व्यावसायिक तथा निजी किसी भी क्षेत्र मंर निर्देशन की सफलता के लिये निर्देशक के पास विभिन्न निर्देशन संस्थाओं, व्यावसायिक सूचना प्राप्ति के सूत्रों तथा व्यक्ति को रोजगार प्रदान करने में सहायता करने वाली संस्थाओं के बारे में पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए।

(11) निर्देशन व्यवस्था में समाज एवं व्यक्ति की आवश्यकतानुसार परिवर्तन किये जा सकने के लिए कुछ लचीलापन होना चाहिए - व्यक्ति की समस्याओं का जन्म उस परिवेश में होता है जहाँ वह जीवन व्यतीत करता है। पर्यावर्तन के बदलने से समस्याओं का स्वरूप बदलता रहता है। निर्देशन में परिवर्तनों के लिये लचीलापन होना चाहिए। व्यवस्थित निर्देशन कार्यक्रम रूढ़ि पर आधारित- न होकर समाज और व्यक्ति की आवश्यकतानुसार परिवर्तन की व्यवस्था रखता है।

(12) समकालीन राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थितियों से निर्देशकों को परिचित होना चाहिए - निर्देशकों के लिये समकालीन राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों से परिचित होना अति आवश्यक है। क्रो तथा क्रो के अनुसार व्यक्ति के कुसमायोजन से तत्कालीन सामाजिक एवं राजनीतिक अशान्ति का महत्त्वपूर्ण हाथ होता है। समस्याओं का हल ढूंढ़ते समय उन राजनैतिक एवं सामाजिक संदर्भों को ध्यान में रखना चाहिए जिनके परिणामस्वरूप कुसमायोजन की परिस्थितियाँ पैदा होती हैं।

(13) निर्देशन जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है - निर्देशन सभी के लिए सुलभ होना चाहिए। निर्देशन की आवश्यकता सामान्य व्यक्ति के लिए भी उतनी ही है जितनी विशिष्ट समस्या वाले व्यक्तियों के लिये। निर्देशन प्रक्रिया किसी विशेष आयु के लोगों तक सीमित नहीं है अपितु यह संपूर्ण जीवन भर चलती रहती है और इसे चलते भी रहना चाहिए। ऐसा इसलिए कि जीवन में समस्याएँ आती ही रहती हैं और ये समस्याएँ समाधान माँगती हैं। अधिकतर समस्याएँ ऐसी होती हैं जिनका हम तुरन्त तैयार हल प्रस्तुत करने में असमर्थ होते हैं। उनके समाधान के लिये समय की अपेक्षा होती है। निर्णय सूझ-बूझ कर लिये जाते हैं, जल्दबाजी में नहीं। निर्देशक या परामर्शदाता को समझाने में पर्याप्त समय लगता है। इसके अतिरिक्त विशिष्ट समस्याओं का समाधान प्राप्त हो जाने के पश्चात् विद्यार्थी के सामने कई समस्यायें आती रहती हैं। परिणामस्वरूप निर्देशन की आवश्यकता सतत् विद्यमान रहती है और इस प्रकार निर्देशन जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। हाँ, यह आवश्यक होता है कि ज्यों-ज्यों विद्यार्थी की सूझ एवं विवेक का विकास होता जाता है निर्देशक पर उसकी निर्भरता कम होने लगती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निर्देशन का क्या अर्थ है? निर्देशन की प्रमुख विशेषताओं तथा क्षेत्र पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- निर्देशन के महत्वपूर्ण उद्देश्य कौन-कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
  3. प्रश्न- निर्देशन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- निर्देशन की आवश्यकता से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- "व्यावसायिक निर्देशन शैक्षिक निर्देशन पर प्रभुत्व रखता है।" स्पष्ट कीजिये एवं इस कथन का औचित्य बताइये।
  6. प्रश्न- निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- निर्देशन की आधुनिक प्रवृत्तियाँ क्या हैं?
  8. प्रश्न- निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- निर्देशन के विषय क्षेत्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  10. प्रश्न- निर्देशन तथा शिक्षा में कौन-कौन से मुख्य अन्तर हैं? स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- निर्देशन के कार्य क्या हैं?
  12. प्रश्न- निर्देशन की प्रकृति का उल्लेख कीजिए।
  13. प्रश्न- भारत में निदर्शन की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- "समृद्ध भारत के लिये निर्देशन सेवाओं की अत्यधिक आवश्यकता है।" विभिन्न परिप्रेक्ष्य में इस कथन की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  16. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के मुख्य उद्देश्यों तथा शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? व्यक्तिगत निर्देशन के स्वरूप एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर व्यक्तिगत निर्देशन के उद्देश्यों या कार्यों का वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व और आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- छात्रों के व्यावसायिक निर्देशन में विद्यालय क्या भूमिका निभा सकता है?
  23. प्रश्न- "व्यक्तिगत निर्देशन, निर्देशन का मूलाधार है।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  24. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन की शिक्षा के क्षेत्र में क्यों आवश्यकता है? स्पष्ट कीजिए।
  28. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? इसके मुख्य उद्देश्य बताइए।
  29. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के सिद्धान्त क्या है स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयोगिता का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- सूचना सेवा से आप क्या समझते हैं? सूचना सेवाओं के उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- सूचना सेवा की कार्य विधि का वर्णन कीजिए।
  33. प्रश्न- नियोजन सेवा से आप क्या समझते हैं? विद्यालय के नियोजन सम्बन्धी कार्यों एवं उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- किसी विद्यालय के निर्देशन सेवा के संगठन की आधारभूत आवश्यकताओं का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- निर्देशन सेवा में विद्यालय स्तर पर कार्यरत प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका का विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अनुवर्ती सेवाओं से आप क्या समझते हैं? इसका क्या प्रयोजन है? अध्ययनरत छात्रों के लिए अनुवर्ती सेवाओं की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- छात्र सूचना या वैयक्तिक अनुसूची सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- सूचना सेवा की आवश्यक सामग्री का उल्लेख कीजिए।
  41. प्रश्न- नियोजन सेवा के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- परामर्श सेवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- सूचना सेवा कितने प्रकार की होती है? विवेचना कीजिए।
  44. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन में आवश्यक सूचनाओं को बताइए।
  45. प्रश्न- व्यक्ति निर्देशन में आवश्यक सूचना को बताइये।
  46. प्रश्न- भारत में व्यवसाय से सम्बन्धित सूचनाओं के प्रमुख स्रोत क्या हैं?
  47. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में परिवार की क्या भूमिका होती है?
  48. प्रश्न- अनुकूलन सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी आवश्यकता के क्या कारण हैं? स्पष्टतया समझाइये।
  49. प्रश्न- उपचारात्मक सेवाओं से आप क्या समझते हैं?
  50. प्रश्न- अनुवर्ती अध्ययन की समस्याएँ एवं समाधान का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों का अनुवर्ती अध्ययन क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  52. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों के अनुवर्ती अध्ययन की विधियों का वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- कृत्य विश्लेषण एवं कृत्य संतोष में क्या सम्बन्ध है?
  54. प्रश्न- विद्यालयों में निर्देशन सेवाओं से आप क्या समझते हैं? विद्यालय निर्देशन- सेवाओं के संगठन के प्रचलित सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  55. प्रश्न- माध्यमिक स्तर पर निर्देशन सेवाओं के संगठन का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा के प्रमुखं कार्य कौन-कौन से हैं? प्राथमिक तथा सैकेण्ड्री स्कूल स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम संगठन के उद्देश्यों तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- विद्यालयी निर्देशन सेवाओं के संगठन की मुख्य संकल्पनाएँ क्या हैं? इसकी आवश्यकता व क्षेत्र क्या है? वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- वर्णन कीजिए कि आप एक शिक्षक के रूप में माध्यमिक स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम को किस प्रकार से संगठित करेंगे?
  59. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा द्वारा किये जाने वाले मुख्य कार्यों की विवेचना कीजिए।
  60. प्रश्न- विद्यालय की निर्देशन संगठन सेवा का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के सफल संगठन के लिए किन-किन मुख्य बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन कार्यक्रमों के सफल संचालन हेतु किन-किन कर्मचारियों की आवश्यकता होती है? स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं के विभिन्न रूपों तथा सिद्धान्तों को संक्षिप्त रूप में बताइए।
  64. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के महत्व की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श के उद्देश्य तथा सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श की आवश्यकता तथा महत्व का वर्णन कीजिए। अथवा छात्र परामर्श की आवश्यकता बताइये।
  68. प्रश्न- परामर्श की प्रक्रिया को समझाइए।
  69. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  70. प्रश्न- परामर्श से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- परामर्श और निर्देशन में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता में कौन-कौन से गुणों का होना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  73. प्रश्न- परामर्श से सम्बन्धित प्रमुख परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- परामर्श के उद्देश्यों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  75. प्रश्न- "एक परामर्शदाता के लिये समूह गतिशीलता का ज्ञान होना आवश्यक है।" स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- धर्म-परामर्श में सह-सम्बन्ध बताइये।
  77. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त-अध्ययन विधि से आप क्या समझते हैं? इसके गुणों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र क्या है? संचित अभिलेख पत्र की विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? इस पत्र की उपयोगिता की व्याख्या कीजिए।
  79. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि से आप क्या समझते हैं? साक्षात्कार प्रविधि के मुख्य तत्त्वों विशेषताओं एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- निर्धारण मापनी या रेटिंग स्केल से आपका क्या अभिप्राय है? इनकी मुख्य विशेषताओं तथा प्रकारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के कितने प्रकार हैं? अनिर्देशित साक्षात्कार प्रविधि के लाभ एवं सीमाएँ बताइए।
  82. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र के निर्माण के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  83. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त अध्ययन प्रविधि की सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  84. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के गुणों का वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि या निर्धारण मापनी को परिभाषित कीजिए।
  86. प्रश्न- साक्षात्कार विधि के मुख्य उपयोगों के बारे में संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट करें।
  88. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन प्रविधि के दोषों पर प्रकाश डालिए।
  89. प्रश्न- प्रश्नावली प्रविधि के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि की कमियों या सीमाओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- संचयी आलेख का अर्थ बताइए।
  92. प्रश्न- परामर्श प्रदान करने की मुख्य प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श की प्रविधियों की मुख्य धारणाओं, सोपानों तथा लाभ एवं कमियों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- परामर्श की प्रमुख प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशन और परामर्श में साक्षात्कार प्रविधि क्यों अधिक उपयोगी सिद्ध हुई है? स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- समन्वित परामर्श से आप क्या समझते हैं? समन्वित परामर्श की मुख्य धारणाओं, लाभों तथा कमियों एवं सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श तथा निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  96. प्रश्न- निर्देशन के साधन क्या हैं?
  97. प्रश्न- निर्देशात्मक परामर्श की प्रमुख विशेषताओं और सीमाओं पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- अनिदेशात्मक परामर्श से क्या तात्पर्य है? अनिदेशात्मक परामर्श की मूल धारणाओं का उल्लेख कीजिए।
  99. प्रश्न- निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  100. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श के मुख्य कार्यों को संक्षेप में बताएँ।
  102. प्रश्न- समन्वित परामर्श मुख्य चरणों या पदों को संक्षिप्त रूप में स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- निर्देशीय परामर्श के मुख्य चरण या सोपान कौन-कौन से हैं? स्पष्ट कीजिए।
  104. प्रश्न- परामर्श के किसी एक उपागम का वर्णन कीजिए।
  105. प्रश्न- परामर्शदाता की विशेषताओं, गुणों तथा व्यावसायिक नीतिशास्त्र का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- परामर्शदाता की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  107. प्रश्न- परामर्शदाता में किस प्रकार का अनुभव होना आवश्यक है, बताइये।
  108. प्रश्न- परामर्शदाता का प्रशिक्षण कार्यक्रम बताइये।
  109. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  110. प्रश्न- परामर्शदाता के व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषकों का उल्लेख कीजिए।
  111. प्रश्न- क्रो एवं क्रो के अनुसार परामर्शदाताओं के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- परामर्शार्थी और परामर्शदाता के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की आवश्यकता बताइए तथा निर्देशन केन्द्रों के उद्देश्य भी बताइए।
  114. प्रश्न- भारत में निर्देशन एवं परामर्श की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  115. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों के कार्य बताइए।
  116. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  117. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार, विशेषताएँ एवं सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- बुद्धि के मापन से आप क्या समझते हैं? बुद्धि परीक्षणों के प्रकार का वर्जन करते हुए बुद्धिलब्धि को कैसे ज्ञात किया जाता है? स्पष्ट कीजिए।
  119. प्रश्न- शिक्षा और निर्देशन में बुद्धि परीक्षणों की उपयोगिता की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- रुचि क्या है? रुचि की महत्वपूर्ण विशेषताओं और प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- अभिवृत्ति का क्या अर्थ है? अभिवृत्ति परीक्षण का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- 'रुचि आविष्कारिकाएँ' क्या मापन करती हैं? कम से कम दो रुचि आविष्कारिकाओं का नाम बताइए।
  123. प्रश्न- बुद्धि कितने प्रकार की होती है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- बुद्धि की मुख्य विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- बुद्धि के अर्थ तथा स्वरूप पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  126. प्रश्न- रुचि का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए।
  127. प्रश्न- रुचियों के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं? संक्षेप में बताइये।
  128. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में रुचि सूचियों के लाभ का वर्णन कीजिए।
  129. प्रश्न- रुचि-सूचियों की कमियां या दोषों का उल्लेख कीजिए।
  130. प्रश्न- अभिवृत्ति के वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
  131. प्रश्न- अभिवृत्ति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  132. प्रश्न- भारतवर्ष में रुचि मापन के कार्यों पर प्रकाश डालिये।.
  133. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका की विवेचना कीजिए।
  134. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  135. प्रश्न- विशिष्ट बालकों से क्या अभिप्राय है? उनकी क्या विशेषताएँ हैं? पिछड़े बालकों की शिक्षा एवं समायोजन के लिये निर्देशन व परामर्श का एक कार्यक्रम तैयार कीजिए।
  136. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श कर्मचारी वर्ग के रूप में प्रधानाचार्य की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  137. प्रश्न- विशिष्ट बालकों को निर्देशन व परामर्श देते समय क्या सावधानियाँ रखी जानी चाहिये? वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- चिकित्सा कर्मचारी किस प्रकार निर्देशन प्रक्रिया में योगदान देते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  139. प्रश्न- निर्देशन प्रक्रिया में शारीरिक शिक्षक के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  140. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  141. प्रश्न- प्रधानाचार्य के निर्देशन सम्बन्धी उत्तरदायित्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  142. प्रश्न- निर्देशन में शिक्षक की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  143. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मनोचिकित्सक की भूमिका बताइये।

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